निवेशकों की नजर 2014 पर

हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणामों के बाद शेयर बाजार में उत्साह और रुपये में मजबूती दिखाई दी है। मगर आर्थिक विशेषज्ञों की राय है कि भारत की ओर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवाह में लगातार आ रही कमी के लिए जिम्मेदार कारोबार संबंधी जटिल बाधाएं 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद ही दूर हो सकेंगे। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज तथा स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स (एसऐंडपी) ने भी कहा है कि एफडीआई के परिप्रेक्ष्य में भारत की स्थिति अच्छी नहीं है। इन एजेंसियों का कहना है कि उनके द्वारा भारत की नई रेटिंग मई, 2014 में आम चुनाव के बाद निर्धारित की जाएगी।

हाल ही में जारी औद्योगिक नीति एवं प्रोत्साहन बोर्ड (एफआईपीबी) के आंकड़ों से यह बात सामने आई है कि देश में आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवाह में लगातार कमी आ रही है। विगत सितंबर के दौरान 38 फीसदी की गिरावट के साथ सिर्फ 2.91 अरब डॉलर का एफडीआई आया है। एफआईपीबी के अनुसार, मौजूदा वर्ष में अप्रैल से सितंबर के दौरान एफडीआई 11 फीसदी गिरकर सिर्फ 11.37 अरब डॉलर रहा, जबकि पिछले वर्ष इस दौरान देश में 12.84 अरब डॉलर का एफडीआई आया था। सर्विसेज, टेलीकॉम और मेटलर्जिकल क्षेत्र में एफडीआई में भारी गिरावट आई है। वर्ष 2012-13 में देश में कुल 23.42 अरब डॉलर का एफडीआई आया था, लेकिन 2013-14 के दौरान ऐसा प्रवाह संभव नहीं है।

यकीनन इस समय देश को उच्च विकास दर प्राप्त करने के लिए विदेशी निवेश की भारी दरकार है। लेकिन विदेशी निवेशक भारत से लगातार दूरी बनाए हुए हैं। भारत के पास कुल वैश्विक एफडीआई प्रवाह का केवल 0.8 प्रतिशत ही आ पा रहा है। विकासशील देशों को जो कुल एफडीआई मिलता है, भारत के पास उसका केवल तीन प्रतिशत ही आ रहा है। विडंबना ही है कि विदेशी निवेश को आकर्षित करने वाले कई महत्वपूर्ण आधार भारत के पास हैं। भारत के पास विशाल शहरी और ग्रामीण बाजार, दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ मध्यवर्ग, उजली आर्थिक संभावनाएं, अंग्रेजी बोलने वाली नई पीढ़ी के साथ-साथ विदेशी निवेश पर अधिक रिटर्न जैसे सकारात्मक पहलू मौजूद हैं। किंतु विदेशी निवेशकों के कदम भारत की ओर तेजी से नहीं बढ़ रहे हैं।

भारत की ओर से विदेशी निवेश का प्रवाह न बढ़ पाने की कई वजहें हैं। मसलन सरकारी नीति का स्पष्ट न होना, भूमि अधिग्रहण से संबंधित मसले, पर्यावरण मंजूरी मिलने में देरी, करारोपण जटिलताएं, ईंधन की आपूर्ति के लिए लिंकेज और परियोजनाओं के तीव्र क्रियान्वयन के लिए प्रशासनिक तंत्र की कमजोरियां। भारत की कंपनी कर की दरें भी दुनिया में ऊंची टैक्स दरों वाले देशों में शामिल हैं और यहां भुगतान की संख्या भी वैश्विक औसत से अधिक है। वैश्विक स्तर पर बनाई गई दुनिया के विभिन्न देशों की वर्ष 2014 की कर भुगतान सूची में भारत 158वें क्रम पर है। भारत में कुल कर की दर 62.8 प्रतिशत तक है और मुनाफा, श्रम तथा अन्य करों के तौर पर 33 तरह के भुगतान करने होते हैं। भारत में कराधान नियमों के तहत कर भुगतान में 243 घंटे लगते हैं। इतना ही नहीं भ्रष्टाचार और घोटालों के मामले में चिंताजनक स्थिति होने के कारण भी भारत में विदेशी निवेश का प्रवाह कम होता जा रहा है। दुनिया के 177 देशों की भ्रष्टाचार से संबंधित ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की दिसंबर, 2013 में प्रकाशित सूची में भारत पिछले साल की तरह 94वें स्थान पर है।

स्थिति यह है कि भारत का व्यावसायिक वातावरण उन विदेशी निवेशकों के लिए जटिल है, जो नीतिगत स्थिरता चाहते हैं। विदेशी निवेशक ऐसा भागीदार चाहता है, जिस पर भरोसा किया जा सके। लेकिन इस समय भारत के व्यावसायिक वातावरण के प्रति विदेशी निवेशकों में आशंकाएं हैं। विदेशी निवेशक भारत के चालू खाता घाटे से संबंधित परिदृश्य को भी देख रहे हैं। भारत पहले ही चार और पांच फीसदी राजकोषीय घाटे की समस्या से जूझ रहा है, जो दुनिया के सबसे ज्यादा स्तर वाले घाटों में से एक है। यह भी देखा जा रहा है कि इस समय भारत में क्षमता विस्तार की संभावना काफी कम है, इसलिए भारत आयात पर आधारित विकास चक्र की ओर बढ़ रहा है।

विदेशी निवेशक व्यापार करने के लिहाज से भारत की स्थिति में हो रही गिरावट को भी देख रहे हैं। विश्व बैंक के अनुसार, दुनिया के 189 देशों की ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की 2013 की सूची में भारत पिछले वर्ष की तुलना में तीन पायदान और फिसलते हुए 134वें स्थान पर पहुंच गया है। सूची में सिंगापुर पहले पायदान पर काबिज है। यह रैंैकिंग बिजनेस की शुरुआत करने, निर्माण की अनुमति मिलने, बिजली की व्यवस्था, प्रॉपर्टी को रजिस्टर कराने, क्रेडिट पाने, निवेशकों की सुरक्षा, कर भुगतान करने, सीमा के पार व्यापार करने, कॉन्ट्रेक्ट पाने और दिवालियापन मामले जैसे विभिन्न मानकों के आधार पर की जाती है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद के विशेषज्ञों के द्वारा किए गए अध्ययन में भी यह निष्कर्ष निकाला गया है कि भारत में कोई कारोबार शुरू करना बेहद कठिन है।

निश्चित रूप से विदेशी निवेशकों की निगाहें भारतीय बाजार पर लगी हुई हैं। विदेशी निवेशकों के कदम तेजी से भारत की ओर मोड़ने तथा देश की विभिन्न परियोजनाओं में एफडीआई की आवक को ऊंचाई देने के लिए कई बातों पर ध्यान देना होगा। देश में एफडीआई की राह के रोड़ों को शीघ्र हटाना मुश्किल है। चूंकि अगले आम चुनावों को कुछ महीने ही रह गए हैं, इसलिए लगता है कि नई सरकार के आने पर ही एफडीआई की राह आसान हो सकेगी।

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